सोमवार, 21 अक्तूबर 2013

प्रो. दिलीप सिंह विचार कोश - 4

भाषा की भीतरी परतें 
भाषाचिंतक प्रो. दिलीप सिंह अभिनंदन ग्रंथ
प्रधान संपादक - ऋषभदेव शर्मा
वाणी प्रकाशन, नई दिल्ली,
2012 प्रथम संस्करण, ९९५/-
कवि : जन-कवि 

कवि की भावनागत पावनता, निर्मलता और स्वच्छता ही उसके हृदय में अपने से इतर लोगों की भावनाओं को प्रतिबिंबित कर सकती है. ऐसा कवि ही जन-कवि बनता है. उसकी वाणी असंख्य लोगों के दिलों की आवाज बन जाती है और उसका शब्द-शब्द लोगों के मन को बेध जाता है. (बच्चन का काव्यशास्त्र; पाठ विश्लेषण; पृ.59) 

कविता 

कविता भाषा में आबद्ध सबसे संश्लिष्ट रचना है, अतः इसे सूक्ष्मता के साथ पढ़ना-पढ़ाना अपेक्षित है. किसी भी साहित्यिक कृति को 'पढ़ना' एक ओर अर्थ-बोध है तो दूसरी ओर काव्य वस्तु की पुनः सर्जना भी है. (साहित्य शिक्षण; भाषा, साहित्य और संस्कृति शिक्षण; पृ.156) 

कविता : प्रयोजन 

कविता का प्रयोजन जब पाठक/ श्रोता को संस्कार देने से आ जुड़ता है तब कवि और कविता से पाठक की अपेक्षाएँ काफी बढ़ जाती है. (बच्चन का काव्यशास्त्र; पाठ विश्लेषण; पृ. 60) 

कविता मनुष्य को पूर्णकाम बनाए तभी वह जन-प्रिय भी हो सकती है, लोगों को जीने का ढंग सिखा सकती है और निरंतर उनके साथ चल सकती है, उनकी अपनी बनकर. (बच्चन का काव्यशास्त्र; पाठ विश्लेषण; पृ. 60) 

आम भाषा का परिष्कार भी आज की कविता का अहम काव्य-लक्ष्य है. (सब कुछ, सब कुछ, सब कुछ भाषा; पाठ विश्लेषण; पृ.74)

कविता : भाषा प्रयोग 

कविता अपने गर्भ में अतीत से लेकर समसामायिकता तक के पूरे आयाम को समेटे रहती है और उसमें शैलीय नाम के धरातल पर निम्नतम श्रेणी के भाषा प्रयोग से लेकर उच्चतम श्रेणी तक के भाषा प्रयोग का संश्लेषण होता है. (साहित्य शिक्षण की भाषाविज्ञानिक दृष्टि अन्य भाषा शिक्षण के बृहत संदर्भ; पृ.120) 

कविता : भावक 

आज के काव्य चिंतन में कविता को 'उत्पाद' और भावक को 'उपभोक्ता' के रूप में देखने की दृष्टि अपने उत्कर्ष पर है. (बच्चन का काव्यशास्त्र; पाठ विश्लेषण; पृ. 59) 

कविता का कथ्य 

मनुष्य का अतीत और वर्तमान कविता के कथ्य को ही नहीं उसके अभिव्यक्ति माध्यम भाषा को भी दरेरते, कुरेदते हैं. (छायावादोत्तर काव्यभाषा; पाठ विश्लेषण; पृ.53) 

कविता की भाषा 

कविता का क्षेत्र हमारे जीवन की ही भाँति विविधरूपी होता है. ... कविता भाषा में ही और भाषा के माध्यम से ही रची-समझी जाती है. कविता की भाषा में उतनी ही सर्जनात्मकता होती है जितनी हमारे मस्तिष्क की. (साहित्य शिक्षण की भाषावैज्ञानिक दृष्टि; अन्य भाषा शिक्षण के बृहत संदर्भ; पृ.119) 

सभी भाषाई तत्व या उसकी शक्तियाँ जब एक निर्धारित चौखटे में आती हैं तब उसे हम उस भाषा समुदाय की कविता की भाषा कह सकते हैं. (साहित्य शिक्षण की भाषावैज्ञानिक दृष्टि, अन्य भाषा शिक्षण के बृहत संदर्भ; पृ.120) 

कविता पाठ विश्लेषण 

प्रसिद्ध भाषा चिंतक तथा शैलीविज्ञानिक रोमन याकोब्सन ने कविता पाठ विश्लेषण की एक सूक्ष्म तकनीक का जिक्र किया है (सेलेक्टेड राइटिंग्स : 1971 : मूतों, द हेग).  इस तकनीक में उन्होंने कविता को सबसे पहले बंध/ छंद (स्टैंजा) मैं बाँटने को कहा है. फिर यह देखने का आग्रह किया है कि बंधों के व्याकरणिक मदों का सममित (सिमेट्रिकल) वितरण किस तरह हुआ है कि अलग-अलग बंध मिलकर पूरे पाठ (कविता) का समूहन करते हैं, उन्हें एक 'प्रोक्ति' बनाते हैं. इस संदर्भ में उन्होंने व्याकरणिक दृष्टि से बेमेल तथा एक जैसे बंधों को एक समग्र पाठ के रूप में समन्वित करके देखने की प्रणाली भी हमें दी है. ('पटकथा' को यहाँ, यहाँ और यहाँ से भी देखो; पाठ विश्लेषण; पृ.90-91)

कोई टिप्पणी नहीं: